archery paralympics 2024 :
पेरिस पैरालिंपिक्स में भारत के लिए तीरंदाजी के मुकाबले दुर्भाग्यपूर्ण रहे, भारतीय पैरा तीरंदाज शीतल देवी और सरिता कुमारी ने अपनी मेहनत और प्रतिभा से सबका दिल जीत लिया। जहां सरिता कुमारी और शीतल देवी के शानदार सफर का अंत हो गया। दोनों खिलाड़ी, जिन्होंने भारतीय तीरंदाजी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया था, अपनी बेहतरीन कोशिशों के बावजूद प्रतियोगिता से बाहर हो गईं। इन खेलो में भारतीय खिलाड़ियों की कहानी केवल हार और जीत की नहीं है बल्कि अदम्य साहस और प्रतिबद्धता की कहानी भी है।
शीतल देवी : साहस और दृढ़ता की मिसाल –
शीतल देवी जो जम्मू कश्मीर के क़िस्तवाढ से है ,का जन्म फोकमेलिया नामक दुर्लभ जन्म जात विकार के साथ हुआ। जिसके कारण उनके हाथ नहीं है इसके बावजूद उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प और साहस के बल पर पेरिस पैरालम्पिक (archery paralympics) 2024 में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
एशियाआई पैरा खेलो 2024 में गोल्ड मेडल जीतने के बाद शीतल से पेरिस (archery paralympics) में बड़े कारनामे की उम्मीद है , उन्होंने ने क्वॉलिफिकेशन राउंड में शानदार प्रदर्शन करते हुए। 703 अंक हासिल किये। जो की एक नया विश्व रिकॉर्ड होता। लेकिन तुर्की की ओजनूर गिर्दी क्योर ने 704 अंको के साथ उन्हें मात दी। राऊंड ऑफ 16 में शीतल का सामना चिली की मरियाना जुनिगा से हुआ। जो टोकयो 2020 की रजत पदक विजेता है। शीतल ने कड़ा मुकाबला किया लेकिन अंतिम 3 तीरो में 26 अंक हासिल किये। जबकि जुनिगा ने 27 अंक बना कर अपनी जीत हासिल की।
सरिता कुमारी ; हार में भी जीत की भावना –
सरिता कुमारी हरियाणा के फ़रीदाबाद की रहने वाली पेरिस पैरालम्पिक (archery paralympics) 2024 में भारतीय उम्मीदों का प्रमुख चेहरा थी। एशियाआई पैरा खेलो 2022 में टीम इवेंट में रजत और मिश्रित टीम इवेंट में स्वर्ण पदक जीतने के बाद सरिता से पेरिस में भी इसी प्रदर्शन की भी उम्मीद थी उन्होंने पहले मुकाबले में इटली की एलेनोरा सारती को 141 – 135 से हरा कर क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई।
क्वार्टर फाइनल में उनका सामना तुर्की की ओज नूर गिर्दी क्योर से हुआ। मुकाबला कड़ा था लेकिन सरिता ने संघर्ष पूर्ण प्रदर्शन किया। जिसमे उन्होंने अपने अंतिम 9 तीरो में से 6 को 10 रिंग से मारा। हलाकि वह मुकाबला जीत नहीं पाई। लेकिन उनकी जुझारु प्रवत्ति ने सबका दिल जीत लिया।
भारत की पदक की उम्मीदे अभी भी जीवित
हालांकि, इस हार से निराशा जरूर हुई है, लेकिन दोनों खिलाड़ियों के प्रयासों को सराहना मिलनी चाहिए। भारतीय तीरंदाजी (archery paralympics ) की दुनिया में इन दोनों ने जो योगदान दिया है, वह अद्वितीय है। उनके इस अनुभव से उन्हें सीखने का मौका मिलेगा और वे भविष्य में और भी मजबूत होकर उभरेंगी।
इस हार के बावजूद, सरिता कुमारी और शीतल देवी ने यह साबित कर दिया कि वे किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम हैं। पेरिस पैरालिंपिक्स (archery paralympics ) में उनके द्वारा दिखाए गए समर्पण और संघर्ष की भावना को हमेशा याद रखा जाएगा। भारतीय तीरंदाजी के प्रशंसक आने वाले समय में इन खिलाड़ियों से और भी अधिक उम्मीदें लगाए हुए हैं, और यह निश्चित है कि वे भारतीय खेल जगत में एक बार फिर से चमकेंगे।